आर्तनाद
हार कर उठने की क्षमता अब नहीं मुझ में रही, वो ह्रदय की मधुर ममता अब नहीं मुझमे रही. अब तो मैं संसार के वारों से होकर छिन्न-भिन्न, बन गया हूँ रूद्र हिंसक आर्तनादी नरपशु. अब मेरी सब इन्द्रियां रक्षा में मेरी व्यस्त हैं. मधुर गुंजन मधुप का गांडीव की टंकार है दामिनी का दमकना अब युद्ध की ललकार है, दीख पड़ते हैं मुझे चहुँ ओर अपने शत्रु दल, सांस की आवाज़ मानो शून्य में चित्कार है. मान था अभिमन्यु सा, अब द्रोण सुत सी वेदना!