परदेस
वो जगते हैं, हम सोते हैं, वो सोते हैं , हम जगते हैं, अब सारे रात और दिन अपने, बस आंखों मे ही कटते हैं । क्यों हर लब है ख़ामोश यहां, हर आंख मे क्यों वीरानी सी, है आग कहां जज्बातों की, क्यों दिल ना यहां तड़पते हैं ? बचने को सवालों से जग के, आंखें सूखी ही रखते हैं, दो बूंद बहा लेते हैं बस, जब झूम के बादल फटते हैं । अपना आवारा दिल भी अबकी बार बड़ा संजीदा है, आये हो इतनी दूर कहो, घर वापस तो जा सकते हैं ? क्यों राह लगे पहचानी सी, क्यों हर आहट पर कान लगे? अब कहां अभागा यार यहां, हम किसकी राहें तकते हैं ?