यादों की माला के मनके खोते जाएंगे, हम खुद से हर रोज़ बेगाने होते जाएंगे। मिलना जुलना, हंसना रोना, दुनिया भर के हिज्जे, रफ्ता रफ्ता सब अफ़साने होते जाएंगे। "आते हैं उस तरफ कभी तो तुमसे मिलते हैं", न मिलने के यूँही बहाने होते जाएंगे। इंक़लाब की बू है अब पुर-कैफ हवाओं में, बेवजह ही लोग दीवाने होते जाएंगे। भिंची मुट्ठियों, उठे कदम, लहराती बाहों से, बिछड़े साथी का हम साथ निभाते जाएंगे। गले नही ल गते हैं, अब बस हाथ मिलाते हैं, यार अभागा सभी सयाने होते जाएंगे।
छूटे कोई दीन दुखी ना, सबको करो शुमार लिखो, दबी हुई चीखों को बुन कर, कर्कश इक ललकार लिखो। धरम जो पूछे शरणागत का, जात जो पूछे साधो की, हिंदुस्तानी दिल ऐसा भी हुआ नहीं लाचार लिखो। लिखने दो उनको BSE, NSE और GDP, तुम आम आदमी की जेबों में बची चवन्नी चार लिखो। इस शोर शराबे में सहमा सा सच जो तुमको मिल जाए, एक बार लिखो, दस बार लिखो, तुम उसको बारम्बार लिखो। है वक़्त अभी कुछ कहने का, है वक़्त नहीं चुप रहने का, नफरत के तूफानों में घिरते, इंसानों को प्यार लिखो। सुनो अभागा बदल गए हैं यहाँ मायने शब्दों के, देशभक्त ऐसे हैं गर तो, खुद को तुम गद्दार लिखो।
There are thousands of things in my mind right now that I would like to put on this blog, share with the world. But I hardly manage to find time or the kind of tranquility that I want in order to write. There is one thing however, that never fails to push me to the emotional state where words just seem to flow. Few minutes ago, I watched a video prepared by IITK students called "The Way We Were". There was nothing much in the video. Large part of the video is a music video produced in house at IITK which, I must say, is quite good. The rest of the video is brief snippets of some junta talking about how they feel about IITK and what makes it special for them. It is this part that prompted me to write this post. First to quote a dear friend of mine, the later part in the video looks rather like a "boisterous attempt at self-glorification". I somewhat agree with that and it is this feeling of agreement that forces me to think what would I have said if I was there in th...
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