छूटे कोई दीन दुखी ना, सबको करो शुमार लिखो, दबी हुई चीखों को बुन कर, कर्कश इक ललकार लिखो। धरम जो पूछे शरणागत का, जात जो पूछे साधो की, हिंदुस्तानी दिल ऐसा भी हुआ नहीं लाचार लिखो। लिखने दो उनको BSE, NSE और GDP, तुम आम आदमी की जेबों में बची चवन्नी चार लिखो। इस शोर शराबे में सहमा सा सच जो तुमको मिल जाए, एक बार लिखो, दस बार लिखो, तुम उसको बारम्बार लिखो। है वक़्त अभी कुछ कहने का, है वक़्त नहीं चुप रहने का, नफरत के तूफानों में घिरते, इंसानों को प्यार लिखो। सुनो अभागा बदल गए हैं यहाँ मायने शब्दों के, देशभक्त ऐसे हैं गर तो, खुद को तुम गद्दार लिखो।
एक दिन गणतंत्र चला जाएगा और रह जाएगा सिर्फ झंडा। हम मगन रहेंगे झंडे के रंगों के मायने सुलझाने में और हमारे पैरों के नीचे पथरा जायेगी प्यासी जमीन। सिकुड़ते दिलों में जगह पड़ेगी कम तो एक एक कर के सब घुसपैठिये निकाल बाहर किये जाएंगे और देवताओं को रख दिया जायेगा उनके पत्थरों के घरों में। एक दिन प्रेम चला जायेगा और रह जाएगा सिर्फ देश।
यादों की माला के मनके खोते जाएंगे, हम खुद से हर रोज़ बेगाने होते जाएंगे। मिलना जुलना, हंसना रोना, दुनिया भर के हिज्जे, रफ्ता रफ्ता सब अफ़साने होते जाएंगे। "आते हैं उस तरफ कभी तो तुमसे मिलते हैं", न मिलने के यूँही बहाने होते जाएंगे। इंक़लाब की बू है अब पुर-कैफ हवाओं में, बेवजह ही लोग दीवाने होते जाएंगे। भिंची मुट्ठियों, उठे कदम, लहराती बाहों से, बिछड़े साथी का हम साथ निभाते जाएंगे। गले नही ल गते हैं, अब बस हाथ मिलाते हैं, यार अभागा सभी सयाने होते जाएंगे।
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