बुझी बुझी रही सहर
बुझी बुझी रही सहर, उदास शाम रही,
हुई ना नाम तेरे, ज़िन्दगी बेनाम रही।
यही गुमान था मुझे कि पीछे आते हो,
रवानगी हमारी बिन दुआ सलाम रही।
ये कैसा मुल्क यहां दुश्मनी हो सडकों पर,
और कहे प्यार का इज़हार सर-ए-आम नही।
ना असरदार दुआ और ना काम आयी सदा,
जब हुआ वक्त तो हर शै यहां नाकाम रही।
नही हासिल अगर पैमाना लब-ए-साकी तो,
तरसते होठ की किस्मत छलकता जाम सही।
उलझते रहना उनकी याद से तनहाई मे,
अभागा इसके सिवा अपना कोई काम नही।
Comments
especially loved third, first & fourth verse..
Ankur
-himanshu
तरसते होठ की किस्मत छलकता जाम सही।
Simply great.
-Mayanand