दो अधूरी कवितायें
दो कवितायें। दोनो ही कुछ अधूरी सी पर जिन अहसासों से वो निकलीं थीं वो अब अपनी ताज़गी खो चुके हैं और इसलिये इनके पूरा हो पाने की ज्यादा उम्मीद शेष नही है। अतः जो कुछ भी है, हाज़िर है।
१)
पूरब रवि तत्पर आने को, पश्चिम मे विधु ढल जाने को,
धूमिल पडते जाते तारे, जग से अंधियारा भाग रहा ।
कल रात नयन से निद्रा का एक पल को मिलना हुआ नही,
पलकों मे बन्द रहीं आंखें, मन का दरवाज़ा खुला रहा।
कोई बुला रहा !
२)हर एक दिल मे हमें दर्द बेहिसाब मिला ,
जब भी आंख खुली, चूर चूर ख्वाब मिला ।
सवाल जब भी उठे इश्क़ के, मोहब्बत के,
हर इक निगाह से एक टका सा जवाब मिला ।
गगन मिला, ज़मीं मिली, तुम्हारा साथ मिला ।
Comments
आपके www.pothi.com के रास्ते यहाँ तक पहुँचा। आपकी कविताएँ पढ़ी। बढ़िया।
मैं www.hindyugm.com का सम्पादक हूँ। वहाँ हिन्दी लेखकों और पाठकों की फौज़ है। शायद हमदोनों एक दूसरे के काम के हैं। आपके ईमेल का इंतज़ार करूँगा।
धन्यवाद।