एक नेता की व्यथा

पोस्टर छपवाने पड़ते हैं, विज्ञापन देने होते हैं,
रैलियां सैकड़ों लगती हैं, गठबंधन करने पड़ते हैं.

जनतंत्र के सागर में मित्रों,
कुछ लहरें सहसा उठती हैं,
बाक़ी उठवानी पड़ती हैं.

कुछ बात भूलनी पड़ती हैं, कुछ अजब करिश्मे होते हैं,
अपराध मुक्त भारत के लिए, अपराधी चुनने पड़ते हैं.

जनतंत्र के मेले में मित्रों,
कुछ नाच नचाते बन्दर को,
कुछ बन्दर-नाच नचाते हैं.

कभी चाय बेचनी पड़ती है, इंटरव्यू देने पड़ते हैं,
जब लोग कुर्सियां ना छोड़ें, तो धक्के देने पड़ते हैं.

जनतंत्र की होली में मित्रों,
कई रंग दिखाने पड़ते हैं,
कई रंग बदलने पड़ते हैं.

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