अलविदा
मैं तैयार नहीं था अभी अलविदा के इतने खत लिखने के लिए। जानता था कि एक दिन हमें बिछड़ना है और उस रोज़ के लिए मुट्ठी भर दिन तुम्हारे नाम के मैंने रख छोड़े थे कि कुछ दिन फुर्सत से तुम्हे याद करूंगा। साथ गुज़ारे पलों को फिर से जियूँगा, हँसूँगा, रोऊंगा, मचल पर तुमसे वापस आने की ज़िद भी करूंगा, और फिर आहिस्ता से सब यादें सहेज पर रख दूंगा। पर यहाँ तुम गए हो और अगली आहट दरवाज़े पर है। जैसे जाने की होड़ लगी है! और मैं बदहवास सा इधर से उधर देख रहा हूँ, यहाँ से वहां दौड़ रहा हूँ , जैसे शादी की अगली सुबह के मेहमान विदा हो रहे हों और भाजी के डब्बे अभी तक बंधे न हों। ऐसा करो दोस्त, तुम भी आकर दिल में लगी मातमपुर्सी की कतार में लग जाओ, और रोज़ याद आकर देख लिया करो, कि तुम्हारे नाम के आंसू अभी मेरी आँखों में हैं या नहीं। मैं जानता नहीं कब, कितने हफ़्तों, महीनों या सालों में, पर ज़िन्दगी के गुज़रते पलों में कहीं किसी रोज़, दिल में उठ ता दर्द तुम्हारा होगा। लबों पर कांपती सदा तुम्हारे लिए होगी। और तब हमारी अलविदा मुकम्मल होगी। देखना, उसके पहले याद आना भूल मत जाना।