अम्बर का छोटा सा टुकडा
(There is a window right behind where I sit in my office through which I can see a small patch of sky.)
मेरे पीछे की खिडकी मे रहने वाला,
अम्बर का छोटा सा टुकडा,
मुझसे बात किया करता है ।
सूरज की किरणों से तप कर,
श्याम वर्ण जब हो जाता तो,
अपने कुम्हलाये चेहरे पर,
फ़ूट फ़ूट रोया करता है ।
अम्बर का छोटा सा टुकडा,
मुझसे बात किया करता है ।
कभी कभी अपने संग अपनी,
चिर प्रेयसी वायु को ला कर,
फ़िर वितान मे छिप लज्जा से,
टुकुर टुकुर देखा करता है।
अम्बर का छोटा सा टुकडा,
मुझसे बात किया करता है ।
कभी जो धुन्धलाती शामों मे,
मन एकाकी सा हो जाता,
खोल पिटारे,ला कर तारे,
साथ मेरे खेला करता है।
अम्बर का छोटा सा टुकडा,
मुझसे बात किया करता है ।
पूछा नही कभी पर अक्सर,
ये सोचा करता मन ही मन,
कभी सुना होगा इसने भी,
मेघदूत का प्रणय निवेदन?
समझ सकेगा क्या ये अल्हड,
मूक वेदना मेरे मन की?
और कभी क्या झांकेगा ये,
दूर देश,उस घर की खिडकी ?
और कहेगा आतुर जन से,
दूर देश मे बसा अभागा,
तुमको याद किया करता है।
पास नही तुम हो तो मुझसे,
दिल का हाल कहा करता है।
मेरे पीछे की खिडकी मे रहने वाला,
अम्बर का छोटा सा टुकडा,
मुझसे बात किया करता है ।
Comments
मन एकाकी सा हो जाता,
खोल पिटारे,ला कर तारे,
साथ मेरे खेला करता है।
-my fav part of your poem :)
btw....great poem and wonderful hindi
तुमको याद किया करता है।
पास नही तुम हो तो मुझसे,
दिल का हाल कहा करता है।
door desh me basa abhaga kisko yaad kiya karta hai?
Bahut acchi hai poem!
As for the thought, once the mood is set, you are actually not moving anywhere. Its repititiveness might even get on my nerves on second/third reading. So it should not be a bad idea to remove some fat off it.
-- Akshaya
About the thought: I can try to explain but I will just say that after reading it 2-3 times, you may actually see what the initial paragraphs mean. I think I have said only what I wanted to say :)