सागर किनारे

आज जाने क्यों बैठे बैठे मन मे पांडिचेरी का ख़्याल आ गया । लगभग २ साल हुए जब मैं पहली बार वहां गया था। बहुत सुना था उसके बारे मे पर पहली नज़र मे तो थोड़ी निराशा ही हुई थी। ग़लती शायद जगह की कम और साथ वालों की ज्यादा थी पर जब वापस लौटे तो उतनी ख़ुशी नही थी मन मे। कुछ ठगा सा महसूस कर रहा था, क्या मालूम था कि अपना थोडा सा मन वहीं छोड़ा आया था ।

उसके बाद से एक बार वहां जाना और हुआ पर मात्र एक दिन के लिए और आज अचानक यहाँ अमरीका मे बैठे बैठे मुझे याद आ भी रहा है तो पांडिचेरी ना कि दूसरे अनेक ऐसे स्थान जहाँ के यात्रा अनुभव कहीं अधिक स्मरणीय हैं । मुझे पता है कि कारण क्या है। मेरा मन पांडिचेरी की गलियों मे नही, उसके समुद्र के किनारे कहीं छूट गया है । असल मे पांडिचेरी ही एक मात्र ऐसी जगह है जहां मैं कुछ घंटों से ज्यादा, असल मे कुछ दिन तक समुद्र के पास रह सका हूँ । और गरजते समुद्र के सानिध्य मे कुछ पल बिताने जैसे अनुभव इस संसार मे कम ही हैं । आप अपने ह्रदय की कोई भी झंकार उन लहरों के गर्जन मे सुन सकते हैं और वो उमड़ती लहरें, एक मंझे हुए अभिनेता की भांति , एक धीर श्रोता से लेकर एक चुनौती देते प्रतिद्वंदी तक सभी पात्र सहजता से निभा लेती हैं । एक ऐसा साथी जिसके पास उतना ही समय है जितना आपके पास है, ना एक मिनट ज्यादा और ना एक मिनट कम ।

आज के जमाने मे ऐसे साथी कहॉ मिलते हैं और जब मिल जाते हैं तो छोडे कहां जाते हैं। देखिए ना, हज़ारों मील दूर भी पुकार साफ सुनाई देती है ।

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