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आज़ादी की क़ीमत

आज़ादी की क़ीमत ख़ून नहीं है। इतिहास के पन्ने मालिकों के नहीं, ग़ुलामों के ख़ून से लाल हैं। आज़ादी की क़ीमत है सर के पीछे उग आयीं दो और आँखें। हवाओं में बहेलिये की आसन्न आहट सुनते हुए कान। हड्डियों में समाती हुई बदनतोड़ अनवरत थकन।

अलविदा

मैं तैयार नहीं था अभी अलविदा के इतने खत लिखने के लिए। जानता था कि एक दिन हमें बिछड़ना है और उस रोज़ के लिए मुट्ठी भर दिन तुम्हारे नाम के मैंने रख छोड़े थे कि कुछ दिन फुर्सत से तुम्हे याद करूंगा। साथ गुज़ारे पलों को फिर से जियूँगा, हँसूँगा, रोऊंगा, मचल पर तुमसे वापस आने की ज़िद भी करूंगा, और फिर आहिस्ता से सब यादें सहेज पर रख दूंगा। पर यहाँ तुम गए हो और अगली आहट दरवाज़े पर है। जैसे जाने की होड़ लगी है! और मैं बदहवास सा इधर से उधर देख रहा हूँ, यहाँ से वहां दौड़ रहा हूँ , जैसे शादी की अगली सुबह के मेहमान विदा हो रहे हों और भाजी के डब्बे अभी तक बंधे न हों। ऐसा करो दोस्त, तुम भी आकर दिल में लगी मातमपुर्सी की कतार में लग जाओ, और रोज़ याद आकर देख लिया करो, कि तुम्हारे नाम के आंसू अभी मेरी आँखों में हैं या नहीं। मैं जानता नहीं कब, कितने हफ़्तों, महीनों या सालों में, पर ज़िन्दगी के गुज़रते पलों में कहीं किसी रोज़, दिल में उठ ता दर्द तुम्हारा होगा। लबों पर कांपती सदा तुम्हारे लिए होगी। और तब हमारी अलविदा मुकम्मल होगी। देखना, उसके पहले याद आना भूल मत जाना।

बिछड़ते दोस्तों के नाम

यादों की माला के मनके खोते जाएंगे, हम खुद से हर रोज़ बेगाने होते जाएंगे। मिलना जुलना, हंसना रोना, दुनिया भर के हिज्जे, रफ्ता रफ्ता सब अफ़साने होते जाएंगे। "आते हैं उस तरफ कभी तो तुमसे मिलते हैं", न मिलने के यूँही बहाने होते जाएंगे। इंक़लाब की बू है अब पुर-कैफ हवाओं में, बेवजह ही लोग दीवाने होते जाएंगे। भिंची मुट्ठियों, उठे कदम, लहराती बाहों से, बिछड़े साथी का हम साथ निभाते जाएंगे। गले नही  ल गते हैं, अब बस हाथ मिलाते हैं, यार अभागा सभी सयाने होते जाएंगे।

गणतंत्र

एक दिन गणतंत्र चला जाएगा  और रह जाएगा  सिर्फ झंडा। हम मगन रहेंगे झंडे के रंगों के मायने सुलझाने में और हमारे पैरों के नीचे पथरा जायेगी प्यासी जमीन। सिकुड़ते दिलों में जगह पड़ेगी कम तो एक एक कर के सब घुसपैठिये निकाल बाहर किये जाएंगे और देवताओं को रख दिया जायेगा उनके पत्थरों के घरों में। एक दिन प्रेम चला जायेगा और रह जाएगा सिर्फ देश।

Working From Home in India

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The revolution has started. The long awaited change is upon us. No office is ever going to be the same again as the employees, long oppressed under the yoke of having to wear pants and going to office, march into the glorious future of sitting in their beds with their laptops and asking their friends, children and significant others to keep it down. But no matter how much fun we make of it, the world has definitely shifted. Large companies like Twitter have announced permanent WFH for employees who want it. There are already predictions of suburban price boom in real estate as employees start moving out of overpriced and overcrowded cities in US. Back home, it is not only the startups but even companies like TCS that are looking to have a large chunk of their workforce working from home even when situation returns to normal. Amidst all this, there is little discussion on the implications of WFH in context of India. How will different kind of employees affected by this? Is is...

क्या लिखूं?

छूटे कोई दीन दुखी ना, सबको करो शुमार लिखो, दबी हुई चीखों को बुन कर, कर्कश इक ललकार लिखो। धरम जो पूछे शरणागत का, जात जो पूछे साधो की, हिंदुस्तानी दिल ऐसा भी हुआ नहीं लाचार लिखो। लिखने दो उनको BSE, NSE और GDP, तुम आम आदमी की जेबों में बची चवन्नी चार लिखो। इस शोर शराबे में सहमा सा सच जो तुमको मिल जाए, एक बार लिखो, दस बार लिखो, तुम उसको बारम्बार लिखो। है वक़्त अभी कुछ कहने का, है वक़्त नहीं चुप रहने का, नफरत के तूफानों में घिरते, इंसानों को प्यार लिखो। सुनो अभागा बदल गए हैं यहाँ मायने शब्दों के, देशभक्त ऐसे हैं गर तो, खुद को तुम गद्दार लिखो।

Aritificial Alien Intelligence

Like fashion, even scientific research is subjected to cyclical fads. Topics, techniques come into limelight and then fall out of favor when the gains plateau.  In machine learning, NNs were in vogue in early 90s when SVM came onto the scene and blew them out of water on almost every problem and then got superseded in turn by the log-linear models, CRFs and others. Then in beginning of this decade, NNs have made a tremendous come back, this time becoming the tool of choice for NLP as well. Due to their name and a very crude similarity to how the biological brain is organized, NNs tend to invite comparisons with human brain and every improvement achieved with their help tends to be seen as an step towards Artificial General Intelligence, at least in popular media and common people.  Now, what would happen if tomorrow a different method, a different paradigm of Machine Learning were start performing better than NNs? There is no reason why it could not happen AFAIK. W...