वादा
"तुम भी प्रियतम?"
"अब छोड तुम्हे मुझको आगे जाना होगा,
अब नयी मंजिलें रह रह पास बुलाती हैं।
अब तुमसे जोडा नाता बंधन सा लगता,
अब नयी सुबह कुछ नये क्षितिज दिखलाती है।"
"अलविदा प्रिये!"
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"तज कर अतीत को और भविष्य पर दर्ष्टि जमा,
जीवन पथ पर आगे को मैं बढ आया हूं।
हाथों के बंधन पैरों के कांटों बदले,
टूटे वादों की किर्चें संग ले आया हूं।
अब नये स्वप्न मानो आंखों मे चुभते हैं,
अब नयी दिशा, अंजान डगर सहमाती हैं।
अब द्रढ निश्चय से मेरा कोई साथ नही,
ना नयी चुनौती अब उत्साह जगाती है।
किस तरह से अब कोई नया नाता जोडूं?
नाता फ़िर से एक दिन बंधन बन जायेगा।
और तोड के बंधन फ़िर आगे जाना होगा,
क्या यूंही अभागा ये जीवन कट जायेगा?"
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Prakash Yadav
prakash.yadav@ltees.com