आज़ादी की क़ीमत

आज़ादी की क़ीमत ख़ून नहीं है।
इतिहास के पन्ने मालिकों के नहीं, ग़ुलामों के ख़ून से लाल हैं।

आज़ादी की क़ीमत है सर के पीछे
उग आयीं
दो और आँखें।
हवाओं में बहेलिये की आसन्न आहट सुनते हुए कान।
हड्डियों में समाती हुई बदनतोड़ अनवरत थकन।

Comments

Popular posts from this blog

बिछड़ते दोस्तों के नाम

क्या लिखूं?

Do nightmares qualify for dreams?